श्री लिंग महापुराण (अध्याय -१७) में श्री ब्रह्मा और श्री विष्णु के सम्मुख उमापति महेश्वर के ज्योतिर्मय लिंग स्वरूप में प्रकट होने का वर्णन है। जब ब्रह्मा और विष्णु अहंकार वश खुद को सृष्टि का पालक, संहारक और कर्ता बताकर लड़ने लगे तो उस समय महादेव एक दीप्तिमान लिंग के रूप में प्रकट हुए जिसका ना ओर दिख रहा था ना छोर। ब्रह्मा और विष्णु दोनो इसे देख मोहित हो गए और फिर ये क्या है ऐसा जानने के लिए प्रयासरत हुए।
ब्रह्मा ने श्वेत वर्णी हंस का रूप लिया और ऊपर की तरफ चल पड़े और विष्णु ने विशाल वराह रूप लेकर नीचे की तरफ गए। पर दोनो को ना उस अग्नि स्तंभ का मूल दिखा ना ही अंत।
थक कर दोनो जब वापस आए और हाथ जोड़ खड़े हुए तो ओंकार नाद सुनाई पड़ा। तब उन्हे आदि, मध्य और अंत से रहित आनंद रूप से शुद्ध स्फटिक रूप में प्रभु रूद्रदेव शिव के दर्शन हुए। तत्पश्चात उन्हे वेद ज्ञान, प्रणव की महत्ता और ब्रह्मज्ञान मिला।
महादेव ने उस समय भगवान विष्णु को ५ मंत्र दिए, जो इस प्रकार है :
१) ओंकार से उत्पन्न शुभ्र वर्ण वाला पवित्र ईशान मंत्र -
"ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपतिर्ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम् ।।"
२) गायत्री से उत्पन्न हरित वर्ण वाला अत्यूतम मंत्र -
"तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि । तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ।।"
३) अथर्ववेद से उत्पन्न कृष्णवर्ण वाले अघोर मंत्र -
"अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः । सर्वेभ्यः सर्वशर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्यः ।।"
४) यजुर्वेद से उत्पन्न श्वेत वर्ण वाले साद्योजात मंत्र -
"सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः । भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः ।।"
५) सामवेद से उत्पन्न रक्त वर्ण वाला उत्तम मंत्र -
"वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालाय नमः कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमो बलाय नमो बलप्रमथनाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः ।।"
इन्हीं पांच मंत्रों के साथ भगवान विष्णु ने फिर पुरातन पुरुष महादेव ब्रह्माधिपति शिव की स्तुति गान किया।
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Published by Madhukar Chaubey
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