एकाक्षराय रुद्राय अकारायात्मरूपिणे ⁠। 
उकारायादिदेवाय विद्यादेहाय वै नमः ⁠।⁠।⁠ १ 
तृतीयाय मकाराय शिवाय परमात्मने ⁠। 
सूर्याग्निसोमवर्णाय यजमानाय वै नमः ⁠।⁠।⁠ २
अद्वितीय तथा नाशरहित प्रणवरूप रुद्रको नमस्कार है। अकाररूप परमात्मा तथा उकाररूप आदिदेव विद्यादेहको नमस्कार है ⁠।⁠।⁠ १ ⁠।⁠। 
तीसरे मकाररूप परमात्मा शिव और सूर्य-अग्नि-चन्द्रवर्णवाले रुद्र तथा यजमानरूपवाले महादेवको नमस्कार है ⁠।⁠।⁠
-- श्री लिंग महापुराण (अध्याय १८)
ओंकार की महत्ता अलग अलग जगहों पर अलग अलग प्रतीकों में की गई है। 
प्रणव ही संबल है, प्रणव ही साधन है, प्रणव ही साध्य है। 
प्रणव ही ब्रह्म है, प्रणव ही ब्रह्मज्ञान है। प्रणव ही ब्रह्मा हैं, प्रणव ही विष्णु है, प्रणव ही महेश हैं।
प्रणव से ही वेद है, प्रणव ही वेदज्ञान है। 
🙏🙏

Leave a comment