“ॐ” – हममे से कई आज भी जब कागज पर, कॉपियों में कुछ लिखते हैं ये ओमकार शब्द सबसे पहले लिखते है। कई “ॐ गणेशाय नमः” लिखते है। हमने ये शायद अपने माता पिता से सीखा हो, या किसी गुरुजन के कहने पर या किसी को देख कर। पर ऐसा करते है। अब डिजिटल हो जाने के कारण शायद नहीं करते या कम करते हैं। लिखने के अलावा जब भी हम मंत्र जाप करते हैं तो हर मंत्र के आरम्भ में ओमकार लगाते है। हम ऐसा करते हैं क्योंकि ऐसा करते आये है। पर क्या कभी सोचा है की ये ॐ का इतना महत्त्व सनातन धर्म में क्यों है? क्या कभी सोचा है की वास्तव में इसका इतना महत्त्व क्यों है? बृहदरन्यक उपनिषद् के पाठों को पलटते पढ़ते एक मंत्र पढ़ा – “ॐ खं ब्रह्म । ” ( अध्याय ५। १ )। मतलब “ओमकार ही वृहद् आकाश रूपी ब्रह्म है। आदिगुरु शंकर के भाष्य के अनुसार यहाँ ओमकार ही परम ब्रह्म है ऐसा मानते हुए ध्यान करना चाहिए। उत्सुकता हुई इंटरनेट सर्च किया और भी डिजिटल के साथ साथ फिजिकल पन्ने भी पलटे तो देखा की उपनषिदों में तो “ॐ” के महत्व या ये कहूँ तो ओमकार के साथ ध्यान करने के महत्त्व को बार बार बताया गया है। मुण्डकोपनिषद् के दूसरे खंड में एक ऋचा है – प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते। अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्‌ तन्मयो भवेत्‌ ॥ प्रणव (ओमकार का जाप) धनुष है, आत्मा तीर और परम ब्रह्म लक्ष्य हैं। अगर चित्त को स्थिर करके बिना गलती के ये किया जाये तो तीर लक्ष्य को भेद देता है। मतलब स्थिर चित्त से ओमकार को साधन मानते हुए परम ब्रह्म को ध्यान किया जाये तो ब्रह्म की प्राप्ति होती है। पूरा माण्डूक्य उपनिषद् का विषय ही ओमकार है और इसके आरम्भ में कहा गया है – ओमित्येतदक्षरमिदं सर्वं तस्योपव्याख्यानं भूतं भवद्‌ भविष्यदिति सर्वमोङ्कार एव। यच्चान्यत्‌ त्रिकालातीतं तदप्योङ्कार एव ॥ मतलब ॐ ही सब कुछ है – भूत, वर्तमान, भविष्य। इस त्रिकाल के अलावा भी कुछ है तो वो ॐ है।
छान्दोग्य उपनिषद् जो की सामवेद पर आधारित है उसके आरम्भ में कहा गया है – “ओमित्येतदक्षरमुद्गीथमुपासीत। ” अर्थात ॐ उधगीत है , ॐ पर ध्यान करो इसी की उपासना करो।
कठोपनिषद, जिसमे की यम और नचिकेता के संवाद के द्वारा ब्रह्म ज्ञान और मोक्ष प्राप्ति के साधन को बताया गया है, के द्वितीय वल्ली में यम नचिकेता से कहते हैं – सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति तपांसि सर्वाणि च यद्वदन्ति। यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीम्योमित्येतत्‌ ॥ एतद्‌ध्येवाक्षरं ब्रह्म एतद्‌ध्येवाक्षरं परम्‌। एतद्‌ध्येवाक्षरं ज्ञात्वा यो यदिच्छति तस्य तत्‌ ॥
जिस परम पद /शब्द का गुणगान वेदों में है, सभी तप उसी को बताती हैं, सभी उसी को पाने के लिए ब्रह्मचर्य का आचरण करते हैं वो परम पद “ॐ” है। यही अक्षर परम तत्त्व या परम ज्ञान है। अगर कोई इस अक्षर को जान ले तो वो जिसकी भी इच्छा करता है, वो उसे मिल जाता है ।
अब आप सोचेंगे की ये तो अध्यात्म और ब्रह्म की बातें है। इसमें विज्ञान कहाँ। आज के युग में योग को तो विज्ञान माना जाने लगा है। योग और ध्यान (मैडिटेशन) मानसिक उन्नति के लिए मान्य साधन है। अब आप अगर प्राणायाम करते हैं तो एक प्राणायाम है उद्गीथ प्राणायाम जिसमे प्राणवायु को छोड़ते समय ॐ का उच्चारण करते है। वास्तव में ये ओमकार का ही जाप है। इसको करने से एकाग्रता तो बढ़ती ही है साथ ही साथ ये चित्त को शांत भी करता है। हम सभी इस भाग दौड़ वाली जिंदगी से जब थकते हैं , परेशान होते हैं तो सभी गुरुजन और ज्ञानी कहते हैं मैडिटेशन या ध्यान करो। मन शांत होगा। पर वास्तव में मैडिटेशन अथवा ध्यान की अवस्था आती कहाँ है , बस दो घडी बैठ पाते हैं, मन वहां भी भागता ही रहता है। पर अगर उस समय थोड़ा प्रयास करके श्वासों के आने जाने पर ध्यान केंद्रित करें और ओमकार का जाप करें तो कुछ समय (ये समय वास्तव में कुछ नहीं, बहुत होता है) चित्त स्थिर होने लगता है। ध्यान की अवस्था तो शायद मुनिजन और तपस्वी ही पा पाते होंगे। पर अगर थोड़ा सा भी चित्त स्थिर होता है और आप अपने मन और दिमाग को एकाग्र करके अंतर्मुखी बनाते हैं तो मन और मस्तिष्क की क्षमता को बढ़ा पाएंगे। अगर अध्यात्म और ब्रह्मज्ञान को जाने भी दें तो हमारे पुरातन ऋषि और मुनिजन इस योग विज्ञान को कितना अच्छे से जानते थे ये सब इन उपनिषदों में संकलित है।

अंत में : – मैं कोई ज्ञानी नहीं, वेदांती नहीं। लेख कहीं से टीपा हुआ नहीं है। ये मेरा अपना मनन और चिंतन है जो बिना किसी गुरु के सानिध्य के है इस लिए इसके शत प्रतिशत गलत होने कि सम्भावना ज्यादा है। आप कहेंगे फिर लिखा क्यों? तो मेरा जवाब फिर वही होगा कि अपनी समझ बनाना और लेखनी को मजबूत करना। क्या पता इस चक्कर में कुछ समझ आ जाये या फिर कोई रास्ता मिल जाय। आप कहेंगे कि क्या मैं इस लिखे का अभ्यास भी करता हूँ? शायद हाँ शायद ना।

References:

  1. The Principal Upanisads – S. Radhakrishan
  2. Vrihadaranyak and Chandogya Upanishad- Shankar Bhasya from Gita Press
  3. Translations & Explanations by Swami Chinmayanand
  4. https://www.swami-krishnananda.org/index.html
  5. https://upanishads.org.in/
  6. https://www.wisdomlib.org
  7. Various google links if you search on “Om”, “Importance of Om”, “Om in Vedas & Upanishads”

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