घरों में इंट नहीं, सीसे के दीवार हैं बनने लगे,
रिश्तों में भी नज़ाकत है बढ़ी,
जल्दी से बिखरने वो लगे।
-(भ्रमर)
घरों में इंट नहीं, सीसे के दीवार हैं बनने लगे,
रिश्तों में भी नज़ाकत है बढ़ी,
जल्दी से बिखरने वो लगे।
-(भ्रमर)
अब किसी के पास मनाने का वक्त कहां,
पर रूठ हर बात पर सब जाते हैं।
जज़्बात सिमट गए हैं जमाने के,
शिकायतें भर के हैं, वही उगल दिए जाते हैं।
कोई क्या सोचेगा, अब ये भी लिहाज़ कहां,
मैं के आगे, सब लोग झुके जाते हैं।
-(भ्रमर)
चलो सोने की जुगत करते हैं,
यादों के ख्वाब कुछ जीते है।
डायरी के पीले पन्नों को,
अब सहेज कर फिर रखते हैं।
सुबह फिर से खो जाना है,
रात खुद से चलो मिलते हैं।
-(भ्रमर)
कपास के फूल बिखर जाएं तो कुछ भी नहीं,
सिमट जाएं, गूंथ जाएं तो धागे बनते हैं।
धागा भी अकेला आसानी से टूट जाता है,
सुई में पड़ कर दोहरा दें, तो जोड़ देते हैं।
- (भ्रमर)
क्या जानते हैं कि जैन धर्म के २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर और गौतम बुद्ध समकालीन थे? बल्कि ऐतिहासिक साक्ष्यों के हिसाब से जैन धर्म का आविर्भाव बौद्घ धर्म से पहले हुआ था।दोनो धर्म लगभग ६५० ईसा पूर्व गंगा के किनारे बिहार में फलीभूत हो रहे थे। बिहार उस समय हर प्रकार की संपन्नता से भरा पूरा था। धीरे धीरे कुछ समय बाद दोनो धर्मावलंबी बिहार से विस्थापित होकर देश के दूसरे प्रदेशों में चले गए। बौद्ध धर्म तो मध्य भारत में कम पर पूर्व में चीन और जापान तक और दक्षिण में श्रीलंका तक फैला। पर बिहार में ज्यादा नहीं रहा।
एक समय का संपन्न पाटलिपुत्र और बिहार प्रदेश, आज भी विकास की बात कर रहा है।कैसी विडंबना है कि आज भी सुशासन बाबू जो कि २००५ से मुख्यमंत्री हैं, विकास की ही बात कर रहे हैं।चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्य जो कि मगध से केंद्रित था और पूर्व से लेकर पश्चिम तक फैला था, आज देश के जीडीपी रैंकिंग में १३ वें स्थान पर है।
अजीब है ना?
मेरी डायरी ने कहा मुझसे,
ख्वाब देखना तो तुमने छोड़ ही दिया,
पत्थर से क्यों हो गए हो तुम।
यूं तो पहले भी रात जागते थे रहे,
अब कोई आंखों में क्यों नहीं बसता।
दिल की धड़कन क्यों मशीन सी हुई,
अब किसी के नाम को नहीं जपता।
चलो माना कोई अब हमसफर न रहा,
मंजिलों की दुश्वारियां से मगर हार क्यों माना।
अजनबी से क्यों हो गए हो तुम।
सच ये है कि दिल की अब कोई कहां सुनता,
तभी कहता हूं मैं हूं ना, मेरे पास चले आना।
जो कहोगे, दिल की बात, सब तुम्हारे मैं समझ लूंगा,
कहूंगा कुछ नहीं, जज्बात सारे पन्नों मे समेट लूंगा।
- (भ्रमर)