वो लम्हे जाने कहां गए,
जब आंखो में सपने होते थे।
आंखों में खुमारी होती थी,
हर पहर सुनहरे होते थे।
जब दिल भी हमारा जिन्दा था,
धड़कन में सरगम बजती थी।
करवट करवट, सिलवट सिलवट,
यादों की गवाही देते थे।
सारी दुनिया जब सोती थी,
हम भोर तलक जागे रहते।
कुछ बात तुम्हारी होती थी,
बस याद तुम्हारी होती थी।
सोचा था वक्त भी थम जाए,
हम ख्वाब वही जीते जाएं।
पर कहां गए सपने सारे,
अब कहां गई बातें सारी।
हम दुनियादारी में व्यस्त हुए,
तुम ख्वाब दफ़न करने हो लगे।
अब कहां हमीं हम ही हैं बचे,
अब कहां हमारी बात रही।
जाने क्यों ऐसा लगता है,
हम हम ना रहे , तुम तुम ना रहे।
-(भ्रमर)
Published by Madhukar Chaubey
I am nobody, trying to be somebody.
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