आप जो सोचते हैं, वो आपके शब्द बन जाते हैं। शब्द और सोच आपका व्यक्तित्व।
आपका व्यक्तित्व आपकी जीवन शैली, अपने परिवार और आस पास के समाज पर प्रभाव डालता है।
आपकी सोच, व्यक्तित्व और जीवन के पीछे आपके संस्कार भी होते है। कुछ इस जन्म के और कुछ
पिछले जन्म के। 
बहुत से लोग जिनका शब्दों और अपने व्यवहार पर नियंत्रण होता है वो अपनी सोच और कर्म दोनो
में अंतर भी रख पाते हैं। ऐसे लोग सही हैं या गलत ये पता लगा पाना बहुत मुश्किल होता है।
हर मीठी चीज फायदेमंद हो जरूरी नहीं पर ये भी सच है कि कसेलापन नुकसान भले ही ना करे मुंह
का स्वाद जरूर खराब कर देता है। इस लिए कड़वा बोलने और सीधे बात करने वाले लोग बहुत
पसंद नहीं किए जाते। पर मीठे बोलने वाले पर विश्वास सोच समझ कर, परख कर करना चाहिए।
बहुत कम इंसान होते हैं जो एक जैसा व्यवहार हमेशा, हर किसी के लिए रखते है ।
अधिकांशतः दोहरा जीवन जीते हैं। बहुत कम होते हैं जो वास्तव में मन से या सोच से, वचन से
और कर्म से एक हो पाते हैं। ये स्थिरता, अच्छाई और सच्चाई के साथ लेकर आना ही जीवन का
उद्देश्य होना चाहिए। तभी आप अपने आपको पा पायेंगे। 
योग और ध्यान आपको इस उद्देश्य को पाने में मदद करते हैं। प्राणायाम और ध्यान खासकर
चित्त को स्थिर करते हैं। योग आपके शरीर को तैयार करता है। आपके शरीर की विभिन्न गतियों
और श्वास के बीच तालमेल स्थापित करता है। स्नायु तंत्र और मस्तिष्क में मजबूती और स्थिरता लाता
है। प्राणायाम आपके प्राण वायु को स्थिर और उन्नत करता है। जब आपकी इडा और पिंगला के बीच
सामंजस्य स्थापित हो जाता है तो आप ध्यान लगा पाने को तैयार होते हैं। 
ध्यान की भी कई अवस्थाएं हैं या मैं कहूं तो चरण होते हैं। पहले चरण के ध्यान में आप अपनी
सोच का निरक्षण करते हैं, ये महसूस कर पाते हैं कि आप क्या सोच रहे हैं और साथ ही साथ
अपनी सोच को भटकते हुए देख पाते हैं। अगले चरण में आप उसको नियंत्रित कर पाते है और
ऐसी स्थिर अवस्था में आते हैं जिसमें आप कुछ सोच नहीं रहे होते। मन भटकता नहीं है।
ऐसी ही अवस्था के अभ्यास से आप अपनी सोच, विचार , वाणी और व्यवहार पर नियंत्रण कर पाते 
हैं। इस अभ्यास से ही आप संपूर्ण रूप से एक होने की राह पर अग्रसर होते हैं। यहीं से संस्कारों के
बदलने की यात्रा आरंभ होती है। आप अपने पिछले सारे संस्कार नहीं बदल पाएंगे पर आगे की यात्रा 
सही कर पाएंगे। मन, वाणी और व्यवहार पर नियंत्रण शुद्ध होता जाता है। अबका आपका व्यवहार 
परिमार्जित होता है। आपके अन्दर का दोहरापन, और भ्रम खत्म होता है। 
ये शुद्धता और नियंत्रण ना केवल आपको अपने आप के साथ जोड़ कर एक करता है बल्कि आपको
उस परम पुरुष के साथ जुड़ने में भी मदद करता है जो सबका अंतिम लक्ष्य होता है।
ये ज्ञान कोरा नहीं है। ये अवस्था पाना, अभ्यास पर निर्भर करता है। जब जब आप अभ्यास में हैं,
आप ये सब महसूस कर पाएंगे वरना अभ्यास खत्म और आप अपने आप को वापस वहीं खड़ा कर
पाएंगे। ये अस्थिरता, स्थिरता, नियंत्रण, भटकाव, एकाग्रता, अच्छाई, सच्चाई सब या तो आपके अभी
और पूर्व जन्म के संस्कार हैं। आप जो पाना चाहते हैं अगर वो संस्कारों से नहीं मिला तो योग और
ध्यान के अभ्यास से ही मिलेगा।
अंत में - 
ये सब मेरा एक अनुभव है और ये लेख वास्तव में मेरे और मेरे अन्तःकरण का संवाद है,
जिसमें "आप" वास्तव में "मैं" खुद ही हूं। शायद ये मेरा दोहरापन है और मैं एक होने
की राह पर अभी भटक रहा हूं।

Leave a comment