मेरी डायरी ने कहा मुझसे,
ख्वाब देखना तो तुमने छोड़ ही दिया,
पत्थर से क्यों हो गए हो तुम।
यूं तो पहले भी रात जागते थे रहे,
अब कोई आंखों में क्यों नहीं बसता।
दिल की धड़कन क्यों मशीन सी हुई,
अब किसी के नाम को नहीं जपता।
चलो माना कोई अब हमसफर न रहा,
मंजिलों की दुश्वारियां से मगर हार क्यों माना।
अजनबी से क्यों हो गए हो तुम।
सच ये है कि दिल की अब कोई कहां सुनता,
तभी कहता हूं मैं हूं ना, मेरे पास चले आना।
जो कहोगे, दिल की बात, सब तुम्हारे मैं समझ लूंगा,
कहूंगा कुछ नहीं, जज्बात सारे पन्नों मे समेट लूंगा।
- (भ्रमर)
Published by Madhukar Chaubey
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