चलो सोने की जुगत करते हैं,
यादों के ख्वाब कुछ जीते है।
डायरी के पीले पन्नों को,
अब सहेज कर फिर रखते हैं।
सुबह फिर से खो जाना है,
रात खुद से चलो मिलते हैं।
-(भ्रमर)
चलो सोने की जुगत करते हैं,
यादों के ख्वाब कुछ जीते है।
डायरी के पीले पन्नों को,
अब सहेज कर फिर रखते हैं।
सुबह फिर से खो जाना है,
रात खुद से चलो मिलते हैं।
-(भ्रमर)